Friday, June 4, 2010

Zindagi ki daud me shayad jeena bhool gaya hoon..

ज़िन्दगी की दौड़ में शायद जीना भूल गया हूँ...
भूल गया हूँ की माँ आज भी खाने पर मेरा इंतज़ार करती है
भूल गया हूँ की पिताजी आज भी अक्सर मेरे मनपसंद समोसे शाम को ले आया करते हैं
भूल गया हूँ की आज भाई का दसवी का पहला इम्तेहान था
भूल गया हूँ की दादी के चश्मे पिछले एक हफ्ते से टूटे हुए हैं
भूल गया हूँ की दादा की दवाई का आज आखिरी डोज़ बाकी बचा है

ज़िन्दगी की दौड़ में शायद जीना भूल गया हूँ...
भूल गया हूँ दोस्तों के साथ गली में क्रिकेट खेलना
भूल गया हूँ एक गलत शोट से कांच टूट जाने पर गुप्ता अंकल का पूरी गली में भगाना
भूल गया हूँ पाकिस्तान से हर क्रिकेट मैच जीतने पर पूरी गली में नाचना और पटाखे बजाना
भूल गया हूँ स्कूल न जाने के लिए झूठे पेट दर्द के बहाने बनाना
भूल गया हूँ स्कूल बंक मार के मूवीज जाना

ज़िन्दगी की दौड़ में शायद जीना भूल गया हूँ...
भूल गया हूँ की दीवाली में दीये जलाने में मुझे कितना मज़ा आता था
भूल गया हूँ की होली के रंगों से खेलने के लिए सारा साल यूं ही गुज़र जाता था
भूल गया हूँ की दीदी अब भी रक्षा बंधन पर राखी भेजना नहीं भूलती
भूल गया हूँ की नाना नानी अब भी छुट्टियों पर मेरे आने का इंतज़ार करते हैं
भूल गया हूँ की नए साल पर मोहल्ले के लोग अब भी हुडदुंग करते हैं

ज़िन्दगी की दौड़ में शायद जीना भूल गया हूँ...

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