Monday, May 13, 2019

एक अंजान लड़की

दर्द भी सेहती है तू और
ख़ामोश भी रहती है,
चेहरे से जताती भी नहीं और
तन्हाइयों में रोती है।

बांध के गठरी में ख़्वाबों को
दफ़्न कर दिया तुमने,
अब रात के दरीचे पर
बेजान सी सोती है।

ना कोई हमसफ़र तेरा
ना है हमनवां कोई,
फिर ख़ुद से ख़फ़ा होकर क्यों
ख़ुद को सज़ा देती है।

Sunday, September 26, 2010

तुम बस गुज़रते गए

सूरज डूबता जा रहा था और साथ मेरी उम्मीदें भी
अँधेरा बहार जितना घना हो रहा था
उससे कहीं ज्यादा मुझे अपने में समेट रही थी
और लव्ज़ अब मुझसे कहीं खोने लगे थे
आंसू जो अब बहने लगे थे
तो मुझको यकीं नहीं था की ये कभी थामेंगे
दिल जिसने अब धड़कने से इंकार कर दिया था
क्योंकि उसके एक हिस्से में तुम रहा करती थी
साँसें जो अब भी मेरे शारीर से गुज़र रही थी
पर फिर भी सब कुछ बेजान सा महसूस हो रहा था
नज़रें इधर उधर कुछ तलाश रही थी
जबकि मुझे मालूम था की कुछ बाकी नहीं बचा है
वक़्त थम सा गया था और आगे बढ़ने से इनकार कर रहा था
और मैं, बस पीछे मुड़कर तुम्हे जाते हुए देख रहा था
और, तुमने एक बार भी पलटकर नहीं देखा...

तुम बस गुज़रते गए और यूँही मैं भी गुज़र गया

यूँही अक्सर

यूँही अक्सर
यूँही अक्सर रात में जब ख़ामोशी का दायरा बढ़ने लगता है
और तुम्हारी यादें मुझमे सिमटने लगती हैं
मैं बिस्तर पर करवटे बदलता तुम्हारे ख्याल में खो जाता हूँ
तभी कुछ शर्माती कुछ घबराती मेरे सिरहाने से गुज़रती हुई
तुम्हारी आवाज़ मेरे कानों में आ पड़ती है
मैं चोंक जाता हूँ और इधर उधर तुम्हे खोजता हूँ
पर ख़ामोशी के सिवाय और कुछ हाथ नहीं पड़ता है
मैं फिर बिस्तर पर लेट जाता हूँ और
तुम्हारी यादें मुझे अपने में समेट लेती हैं
फिर तुम्हारी आवाज़ मेरे कानों में आ पड़ती है
ये आवाज़ मुझे एहसास दिलाती है की तुम मेरे करीब हो, मेरे नज़दीक हो
मैं अपनी आँखें बंद कर लेता हूँ
चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा है, लगता है मैं भी खो गया हूँ
तुम्हारी आवाज़ जो अब तक मेरे कानों में गूंज रही थी
अब मेरे ज़हन में उतर आई है
और खुद अपना अक्स ढूंढ़ रही है
अँधेरा अब धीरे धीरे छटने लगा है
सब कुछ साफ़ होने लगा है, देखो तुम तो यहीं हो
मैं भी कितना नादान हूँ इस सच से अनजान हूँ
की तुम मेरा हिस्सा ही तो हो
हर पल गुज़रता हूँ तुम्हारे साथ
तुम मेरा एक किस्सा ही तो हो

Friday, June 11, 2010

Muhe vishwaas hai khud par..

Mujhe vishwaas hai khud par..
ek din udungi mein aasmaan par,
ek din baadalon pe paon rakh kar chhu lungi sitaron ko,
ek din khelungi mein chand ko football samajhkar,
ek din suraj ko apni roshni dikhaungi
ek din mein khud apni duniya banaungi..

haan mujhe vishwaas hai khud par..
ek din mein bhi daudungi is bheed me sabko peechhe chodte hue,
ek din mein dekhungi, us building ke top floor se neeche aur duniya choti si lagegi,
ek din mera naam bhi logon ki zubaan par hoga,
ek din ye duniya mere ishaaron pe chalegi,
ek din me bas kahungi aur ye saari duniya sunegi..

haan mujhe vishwaas hai khud par..
ek din zindagi ke portrait me rang bharungi apne mutabik,
ek din me samay ko rok lungi aur phir usme chabi bharke khud samay ko gati dungi,
ek din meri dhun par chidiya chehchahayegi, jharne gayenge mere geet aur koyal gungunayegi,
ek din me is duniya se dard aur takleef mita dungi aur sirf hansi aur khushi ko jagah dungi,
ek din me beh jaungi baarish ki tarah aur bikhar jaungi indradhanush banke..

Friday, June 4, 2010

कुछ इस तरह गुजारता हूँ

कुछ इस तरह गुजारता हूँ में अपनी रातें
आँखों में तेरी तस्वीर लिए करता हूँ दीवारों से बातें

बंद कर लिए हैं तमाम खिड़की और दरवाज़े फिर भी
ना जाने कौन से रस्ते से तेरे ख्याल हैं आते जाते
आँखों में तेरी तस्वीर लिए करता हूँ दीवारों से बातें

तुझको मिलने से पहले में चैन से सोता था, पर अब
खुली आँखों में भी तेरे ख्वाब हैं आते जाते
आँखों में तेरी तस्वीर लिए करता हूँ दीवारों से बातें

तेरी अदाओं का होने लगा है ये कैसा असर मुझपर
तेरी हंसी हंसाती है मुझको, तेरे आंसू हैं मुझे रुलाते
आँखों में तेरी तस्वीर लिए करता हूँ दीवारों से बातें

चल जा रहा हूँ

चला जा रहा हूँ बिना किसी मंजिल के
ना कारवां है ना कोई साथी है मेरा
अकेला रह गया हूँ इस दुनिया की महफ़िल में

अगर कोई साथ है तो कुछ यादें
कुछ बीते हुए पल, जो आज बन चुके हैं एक कल
पर फिर भी शामिल हैं कहीं न कहीं मेरे वजूद में

बना नहीं पाया किसी को अपना
शायद मुझमे ही कोई कमी होगी
या फिर शायद किस्मत की भी यही मंज़ूरी रही होगी
की तनहा रहू में सदा हर मुश्किल में

चला जा रहा हूँ बिना किसी मंजिल के
ना कारवां है ना कोई साथी है मेरा
अकेला रह गया हूँ इस दुनिया की महफ़िल में

Energy

पड़ोस से बर्तनों की आवाज़ आई
हमें पता था हो रही है पडोसी की पिटाई
न जाने क्या बात है, आधी रात है
और मौसम भी अच्छा है
पर हमारे श्रीमान पडोसी के बदन पर सिर्फ VIP का एक कच्छा है
अवश्य ही हुई है जम के पिटाई
तभी तो पैंट और शर्ट भी नज़र नहीं आई
बेचारा हफ्ते में एक बार तो पिटता ही है
पत्नी का मूड ख़राब हो तो दूसरी तीसरी बार भी पिट जाता है
ना जाने इतनी एनेर्जी कहाँ से लाता है, ना जाने इतनी एनेर्जी कहाँ से लाता है