मौन है अम्बर मौन धरा है विचलित मन भी मौन पड़ा है
प्राण वायु अवरोधित सी है, ह्रदय ध्वनि भी मौन बनी है
मौन है दृष्टि, मौन है सृष्टि, मौन हूँ मैं भी कितनी संतुष्टि
जरा धरा पर अविचलित सी अचेतन सी मौन पड़ी है
श्वेत वस्त्र से आच्छादित हो मृत्यु शय्या में लीन पड़ी है
दूर क्षितिज से कौन है वो जो अपने हाथ फैलाता है
मौन ध्वनि में कौन है वो जो अपने पास बुलाता है
मौन स्वयं को देख रहा में इस अनुभूति से विस्मित होकर
कौन है वो और कौन हूँ मैं इस दुविधा से विचलित होकर
मात पिता, मित्र, सम्बन्धी जन शोकाकुल मिलाप कर रहे
अश्रु धरा बह रही सभी की, देख मुझे विलाप कर रहे
दौड़ रहा इधर उधर मैं, सबके सम्मुख करह रहा
मैं जीवित हूँ, मैं जीवित हूँ, देखो तुम्हे मैं बता रहा
माँ मेरी तू तो मुझे सुन, क्यों तुने भी मुह फेर लिया
कोई नहीं मुझे श्रवण कर रहा, एक शुन्य ने जैसे घेर लिया
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This is something i saw in my dreams..
ReplyDeletesirf ek or sifr ek sach hai hai ye zindagi ke..........
ReplyDelete10 out of 10 Raj sir..........
Dhanyawaad Dhiraj ji..
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