Friday, June 4, 2010

कुछ इस तरह गुजारता हूँ

कुछ इस तरह गुजारता हूँ में अपनी रातें
आँखों में तेरी तस्वीर लिए करता हूँ दीवारों से बातें

बंद कर लिए हैं तमाम खिड़की और दरवाज़े फिर भी
ना जाने कौन से रस्ते से तेरे ख्याल हैं आते जाते
आँखों में तेरी तस्वीर लिए करता हूँ दीवारों से बातें

तुझको मिलने से पहले में चैन से सोता था, पर अब
खुली आँखों में भी तेरे ख्वाब हैं आते जाते
आँखों में तेरी तस्वीर लिए करता हूँ दीवारों से बातें

तेरी अदाओं का होने लगा है ये कैसा असर मुझपर
तेरी हंसी हंसाती है मुझको, तेरे आंसू हैं मुझे रुलाते
आँखों में तेरी तस्वीर लिए करता हूँ दीवारों से बातें

3 comments:

  1. इस कदर गहराई है इन ग़ज़लों के लव्जो में , कहीं ये दिल की गहराईयों का आइना तो नहीं |

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  2. hmm.. Saurabh ji, ye sab dil se hi nikalta hai, dimaag kahan ye sab soch paayega

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  3. so our poet is back...lagta hai apki madem ne ek dum jaado ker diya hai....right

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