यूँही अक्सर
यूँही अक्सर रात में जब ख़ामोशी का दायरा बढ़ने लगता है
और तुम्हारी यादें मुझमे सिमटने लगती हैं
मैं बिस्तर पर करवटे बदलता तुम्हारे ख्याल में खो जाता हूँ
तभी कुछ शर्माती कुछ घबराती मेरे सिरहाने से गुज़रती हुई
तुम्हारी आवाज़ मेरे कानों में आ पड़ती है
मैं चोंक जाता हूँ और इधर उधर तुम्हे खोजता हूँ
पर ख़ामोशी के सिवाय और कुछ हाथ नहीं पड़ता है
मैं फिर बिस्तर पर लेट जाता हूँ और
तुम्हारी यादें मुझे अपने में समेट लेती हैं
फिर तुम्हारी आवाज़ मेरे कानों में आ पड़ती है
ये आवाज़ मुझे एहसास दिलाती है की तुम मेरे करीब हो, मेरे नज़दीक हो
मैं अपनी आँखें बंद कर लेता हूँ
चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा है, लगता है मैं भी खो गया हूँ
तुम्हारी आवाज़ जो अब तक मेरे कानों में गूंज रही थी
अब मेरे ज़हन में उतर आई है
और खुद अपना अक्स ढूंढ़ रही है
अँधेरा अब धीरे धीरे छटने लगा है
सब कुछ साफ़ होने लगा है, देखो तुम तो यहीं हो
मैं भी कितना नादान हूँ इस सच से अनजान हूँ
की तुम मेरा हिस्सा ही तो हो
हर पल गुज़रता हूँ तुम्हारे साथ
तुम मेरा एक किस्सा ही तो हो
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fantastic.........
ReplyDeletethanks mini..
ReplyDeletenice....especially the way it ends :)
ReplyDeleteThanks Umang!
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