Monday, May 13, 2019

एक अंजान लड़की

दर्द भी सेहती है तू और
ख़ामोश भी रहती है,
चेहरे से जताती भी नहीं और
तन्हाइयों में रोती है।

बांध के गठरी में ख़्वाबों को
दफ़्न कर दिया तुमने,
अब रात के दरीचे पर
बेजान सी सोती है।

ना कोई हमसफ़र तेरा
ना है हमनवां कोई,
फिर ख़ुद से ख़फ़ा होकर क्यों
ख़ुद को सज़ा देती है।